विशाल छाया - 1 Ibne Safi द्वारा जासूसी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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विशाल छाया - 1

इब्ने सफ़ी

अनुवादक : प्रेम प्रकाश

(1)

रमेश ने कमरा सर पर उठा रखा था । उसकी आँखे लाल थी मुंह से कफ निकल रहा था । बाल माथे पर बिखरे हुए थे । कमीज़ आगे पीछे से फट कर झूल रही थी और वह पागलो के समान कमरे की एक एक वस्तु उठाकर फेंक रहा था । 

सरला आवाज़ सुन कर अपने कमरे से निकली और जैसे ही रमेश के कमरे का द्वार खोला –एक पुस्तक तीर के समान आकर उसके मुंह पे पड़ी और वह बौखला कर पीछे हट गई । कुछ क्षण तक खडी रमेश को घूरती रही, फिर घायल शेरनी के समान कमरे में दाखिल हुई और तीव्र स्वर में बोली ----

“ यह क्या उत्पात मचा रखा है तुमने ?”

“ तुम भी मुझे मिस खटपट ही मालूम पड़ती हो । ”

“ बंद करो बकवास -----” सरला कंठ फाड़कर चीखी । 

“ बकवास नहीं मिस खटखट ---” रमेश ने कहा और दो पुस्तकें उठा कर उसकी ओर फेंकी । 

“ मैं तुम्हारे कान उखाड़ लुंगी ----”

“और मैं तुम्हें खटखट बना दूंगा ---” रमेश ने भी आंखें निकलकर कहा । 

सरला को संदेह हो रहा था की रमेश सनक गया है । वह उसे इस उत्पात से रोकने के बारे में सोच ही रही थी कि रमेश ने एशट्रे उठा कर उसकी ओर फेंका । सरला कतरा कर बच गई और झपट कर रमेश के पास पहुँची और उसे ढकेल दिया । 

रमेश लड़खडा कर गिरा और आँखों पर हाथ रख कर चिल्लाया । 

“बचाओ ----बचाओ ! ---मिस खटखट से मुझे बचाओ !”

सरला ने उसका कालर पकड़ कर उठाया । रमेश कुछ क्षण तक उसकी आँखों में देखता रहा, फिर मुट्ठियाँ बांध कर सरला पर झपटा मगर सरला असावधान नहीं थी । उसने उलटा हाथ घुमाया और रमेश दोनों हाथों से सर पकड़ कर बैठ गया । 

“ हाय रे ....तुम भी मुझे खटखट बना रही हो ---” रमेश ने कहा और फिर रोने लगा । 

सरला सन्नाटे में आ गयी । 

रमेश ----और आंसू । 

दोनों में हमेशा खटपट होती रहती थी । कभी कभी मारपीट भी हो जाती थी और ऐसी ऐसी कड़ी बातें भी हो जाती की अगर दूसरा कोई होता तो सदैव के लिये नाता तोड़ लेता, मगर यह दोनों लड़ झगड़ कर फिर एक हो जाते थे, लेकिन यह कभी नहीं हुआ था कि रमेश की आंखें भर आयीं हो या आंसू गिर पड़े हो । 

मगर आज वही रमेश बच्चों के समान रो रहा था और सरला समज नहीं पा रही थी कि मामला क्या है । आंसू देख कर उसका मन पसीज गया और उसने बड़े कोमल स्वर में पूछा । 

“ आखिर क्या हुआ है तुम्हें ?”

“ मुझे ......खटखट ..हो गया है –” रमेश हिचकियाँ लेता हुआ बोला । 

सरला को फिर क्रोध आ गया । उसने बिगाड़ कर कहा ------

“ होश में आओ रमेश वर्ना मेरा हाथ फिर चल जायेगा । ”

“ मेरा नाम रमेश नहीं है ---” रमेश ने कहा ---” मेरा नाम खटखट है । बाप का नाम भी खटपट था और दादा का भी --- वैसे सच पूछो तो यह सारी दुनिया ही खटखट का कारखाना है .....। ”

और फिर वह चौंक कर अल्मारी की ओर देखता हुआ बोला---” खाना तो यहां है मगर कार कहां गई ....ओह ! अब समजा ... कार भी खटखट हो गयी । 

शोर सुनकर बगल वाले फ्लैट से भी लोग निकल आये थे, और गलियारे में बड़े आश्चर्य से दोनों की ओर देख रहे थे । 

“ क्या हुआ है इनको ?” एक औरत ने रमेश की ओर संकेत कर के सरला से पूछा । 

“ मैं नहीं जानती !” सरला ने मुंह बना कर कहा । 

“ क्या नशे मैं है ?”

“ हां हां, मैं नशे में हूं -----” सरला के उत्तर देने से पहेले ही रमेश ने चीख कर कहा –” मैंने खटखट पी है ...मुझे खटखट पिलाई गयी है .... भाग जाओ मिसेज खटखट वर्ना खटखट हो जाएगी और फिर खटखट ....खटक....”। 

रमेश बोलते बोलते अचानक मौन हो गया, फिर चीखा । 

“ सरला को बचाओ । ---बचाओ सरला को ! अमे ऐ खटखट की औलाद ....मैं तुझे मार डालूँगा । ”

सरला तंग आकर मौन हो गयी थी और रमेश घुटनों में सर दे कर बैठ गया था, और कभी कभी चीखने लगता था । 

गलियारे में भीड़ बढ़ती जा रही थी । अब तो निचले खंड के लोग भी ऊपर आ गए थे । यह सब रमेश को न केवल जानते थे, बल्कि उसकी बुद्धिमानी के प्रशंसक भी थे । वह सब आश्चर्य से उसे देख रहे थे । कोई कुछ बोल नहीं रहा था । 

“ अरे भाई ! डाक्टर को बुलाओ ---” अचानक एक आदमी ने कहा । 

और फिर सब ही बोलने लगे । अपनी अपनी समझ के अनुसार हर आदमी डाक्टरों के नाम लेने लगा और फिर इस बात पर तर्क होने लगा कि कौन डाक्टर सबसे योग्य है । 

अचानक सरला के नेत्रों में चमक आ गई । ऐसा लग रहा था जैसे वह रमेश के पागलपन का कारण समझ गई हो । उसने एक को सम्बोधित करके कहा । 

“कर्नल विनोद को फोन करो । ”

“ विनोद । ” उस आदमी ने आश्चर्य से पूछा ---”यह कौन सा डाक्टर है ?”

“तुम फोन करो, आने पर देख लेना ---” सरला ने झल्ला कर कहा । 

प्रथम इसके कि वह आदमी कोई उत्तर दे, सतरह अठारह वर्ष की एक लड़की तेजी से नीचे उतरती चली गई । 

रमेश जो थोड़ी देर के लिये मौन हो गया था अचानक सर उठा कर बोला—

“ए मिस ख़ट ख़ट –साला कहां है .....मेरे पास सिगरेट नहीं है .....हाय रे सिगरेट ..अरे ...फिर वही ख़ट ख़ट ..। 

और फिर वह पहले ही के समान चीखने लगा । 

सरला के नेत्रों में फिर आंसू भर आये । 

रमेश ने झपट कर उअके बालों को मुट्ठीयों में जकड़ लिया और सरला उस पर झुकती चली गई । 

“यह जंगली मालूम होता है –” एक बूढी औरत ने नाक सिकोड़ कर कहा और सरला को छुड़ाने के लिये आगे बढ़ी । 

मगर सरला ने उसे रोक दिया । वह रमेश पर झुकी अपने हाथों से उसका सर सहलाने लगी थी । 

रमेश की मुट्ठी में अब तक उसके बाल थे । उसने बड़े करुण स्वर में कहा । 

“रमेश –रमेश !”

और फिर उसके नेत्रों से आंसू निकल कर रमेश के गालों पर गिरने लगे । 

रमेश ने अपना बंधन ओर सख्त कर लिया मगर वह विवशता के भाव में सरला की ओर देख भी रहा था । 

और फिर वह इस प्रकार चीखा जैसे उसे हलाल किया जा रहा हो । सरला के बाल उसकी मुट्ठी से निकल गये और उसकी आंखें बंद होने लगीं । 

फी दुसरे ही क्षण वह बेहोश हो गया । 

सरला उसे विस्फारित नेत्रों से देख रही थी । 

गलियारे में खड़े लोगों की कानाफूसी तेज हो गयी । वह एक दुसरे को संकेत कर रहे थे । कुछ लड़कियाँ मुस्कुराने भी लगी थी । 

थोड़ी ही देर बाद कर्नल विनोद और हमीद भी आ गये । शायद उड़ लड़की ने उन्हें फोन कर दिया था । 

“क्यों सरला ! क्या बात है ?” विनोद ने पूछा और फिर रमेश पर झुकता चला गया । 

“एक्टिंग ....बेटा दिलीप कुमार बनने का अभ्यास कर रहे हैं ---। ”

हमीद ने कहा और दिवार की ओर देखने लगा । 

इन लोगों के आ जाने के कारण भीड़ छटने लगी थी । 

“क्या तुम्हारे सीने में पत्थर है ?” सरला झनझना कर बोली । 

“हां मगर तुम्हारे लिये नहीं बल्कि इस जोकर के लिये ‘ हमीद ने रमश की ओर संकेत करके कहा । 

“तुम जंगली हो नीच हो ----” सरला मुट्ठियाँ भींच कर बोली । 

“नकचढ़ी औरतों की गालियों का मैं बुरा नहीं मानता ?”

विनोद ने हमीद को घूरा और हमीद फिर दिवार की ओर देखने लगा । 

“क्या मामिला है ?” विनोद ने सरला से पूछा । 

सरला ने विवरण सहित सारी बातें बता दी । 

विनोद के माथे की रगें उभर आयी । वह ध्यान पूर्वक रमेश की ओर देख रहा था । अचानक उसने सरला से पूछा । 

“रात यह घर पर था ?” “नहीं –” सरला ने कहा । 

“तुम्हें मालूम है कि यह रात कहाँ गया था ?”

“नहीं ! इसने मुझसे कुछ नहीं कहा था । ”

“इसे कोई जहरीला इंजेक्शन दिया गया है । शायद उसी का यह प्रभाव है । ” विनोद ने उठते हुये कहा । 

वैसे तो उसने यह बात धीरे स्व कही थी, मगर गलियारे में जो लोग बच गये थे उन्होंने भी यह बात सुन ली और उनके चेहरों पर भय के चिन्ह अंकित हो गये थे । 

सरला का चेहरा सफ़ेद पड़ गया था, मगर हमीद पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा । वह उसी भाव में दीवार की ओर देख रहा था । अचानक वह विनोद की ओर मुडा और बोला –

“यह लोग कब तक खड़े रहेंगे ?”

“कौन बोला ?” विनोद ने पूछा । 

हमीद ने उन लोगों की ओर संकेत किया जो अभी तक गलियारे में खड़े थे । 

“इनसे कह दो कि यह अपने घर जायें । ”

“तो फिर लाश कौन ले जायेगा ?” हमीद ने पूछा । 

“लाश !” विनोद ने आश्चर्य के साथ पूछा”किसकी लाश ?”

“राजेश की लाश....क्या यह अभी तक नहीं मरा ?”

“हमीद !” विनोद ने इतनी जोर से डॉटा कि हमीद ने मुंह घुमा लिया और फिर दीवार की ओर देखने लगा । 

अचानक ऐसा लगा जैसे वह चकरा कर गिर जायेगा, क्योंकि सामने वालो दीवार पर वह एक विचित्र प्रकार की परछाई देख रहा था । 

यह परछाई किसी आदमी की नहीं थी । यह परछाई किसी जानवर की थी । 

ऐसे जानवर की जो चौपाया था, मगर जिसके सर पर फेल्ट लगी हुई थी । 

“अरे यह क्या है !” गलियारे में खड़े हुये एक आदमी ने बौखला कर कहा । ऊसकी नजर उस परछाई पर पड़ गई थी । 

और फिर जितने लोग वहां खड़े थे वह सब उसी दीवार की ओर देखने लगे फिर वह सब सर पर पाँव रक्ग कर भागने लगे । 

हमीद की नजर अब तक उस परछाई पर लगी हुई थी । 

अब वह परछाई गतिशील नजर आ रही थी । ऐसा लग रहा था जैसे वह जानवर चल रहा हो । 

सरला भी उसी ओर देख रही थी । 

विनोद भी कुछ क्षण तक दीवार को देखता रहा । 

अचानक वह परछाई कलाबाजी खा गई । 

हमीद के मुख से चींख निकल पड़ी । 

अब गलियारे में सन्नाटा था और बगल के तमाम फ्लैटों में तालें लग गये थे । 

“चलो, इसे उठाओ । ” विनोद ने हमीद से कहा । 

“और यह परछाई ?” हमीद हकला कर बोला । 

“यह परछाई तुम्हें खा तो नहीं जायेगी ?” विनोद ने झल्ला कर कहा । 

“मगर यह मुझसे नहीं उठेगा । ”

विनोद ने घूर कर हमीद की ओर देखा, फिर झुक कर रमेश को उठाया, और कन्धे पर डाल दिया । 

“कमरा में ताला बन्द करके तुम भी मेरे साथ आओ ?” उसने सरला से कहा । 

“अरे !” हमीद ने चौंक कर कहा”वह परछाई क्या हुई ?”

“मेरा विचार है कि वह तुम्हारी ही परछाई थी, गधे कही के । ”

“गधे की नहीं थी । ” हमीद ने गंभीरता से कहा”वह परछाई न तो गधे की थी न आदमी की थी ?”

“हमीद !”

“जी !”

“बकवास बंद करो । ”

“बंद करो न ---खडी खड़ी मेरा मुंह क्या देख रही हो ?” हमीद ने सरला की ओर देख कर कहा। 

और फिर जब वह कमरे से निकल कर गलियारे से गुजरने लगे तो कई दरवाजे की दराज से कई आंखें उन्हें देख रही थीं ।